कैलाश गहलोत का इस्तीफा: AAP के नेतृत्व पर गंभीर सवाल
दिल्ली की राजनीति में उस समय भूचाल आ गया जब AAP के वरिष्ठ नेता और दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने पार्टी से इस्तीफे की घोषणा कर दी। अगले विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले आई ये खबर आम आदमी पार्टी के लिए एक बड़ा झटका साबित हो रही है। यह इस्तीफा पार्टी की आंतरिक राजनीति और उसकी नीतियों पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।
गहलोत ने अपने इस्तीफे के पीछे 'गंभीर चुनौतियाँ' बताते हुए पार्टी की नेतृत्व क्षमता और निर्णय प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। गहलोत ने अपनी चिट्ठी में यमुना की सफाई से लेकर 'शीशमहल' के नवीनीकरण जैसे मुद्दों का जिक्र किया। उनका मानना है कि इन विवादों ने जनता के विश्वास को हिला दिया है और पार्टी की प्रतिष्ठा को गहरा नुकसान पहुँचाया है।
गहलोत की नाराजगी का केन्द्र दिल्ली सरकार के कामकाज की शैली भी है। उनका कहना है कि पार्टी के राजनीतिक लक्ष्यों ने जनता की सेवा से ज्यादा महत्व पा लिया है। इस स्थिति ने उन्हें पार्टी की मूल दिशा पर चिंतित किया है, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने इस्तीफा देने का निर्णय लिया।
बीजेपी की प्रतिक्रिया और आरोप
जहाँ गहलोत के इस्तीफे ने आम आदमी पार्टी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े कर दिए हैं, वहीं भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इसे साहसिक कदम बताया है। बीजेपी के दिल्ली अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि गहलोत का इस्तीफा AAP नेतृत्व के कमजोरियों को उजागर करता है। उन्होंने इसे केजरीवाल सरकार की विश्वसनीयता पर प्रहार करार दिया।
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहज़ाद पूनावाला ने भी AAP की आलोचना की और इसे 'खास' पार्टी बताया, जो अपनी मूल धाराओं से भटक चुकी है। उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि अन्ना हजारे, योगेंद्र यादव और कुमार विश्वास जैसे नेताओं ने भी इसी वजह से पार्टी छोड़ दी थी।
आप का पक्ष और गहलोत पर दबाव
आम आदमी पार्टी ने गहलोत के इस्तीफे के पीछे बीजेपी पर आरोप लगाया है। AAP का दावा है कि केंद्रीय जांच एजेंसियों जैसे प्रवर्तन निदेशालय (ED) और आयकर विभाग के जरिए गहलोत पर दबाव डाला जा रहा था। यह भी आरोप लगाया गया कि गहलोत को पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया।
मुख्यमंत्री अटलजी ने गहलोत का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है, लेकिन पार्टी के कई अन्य नेताओं का कहना है कि यह इस्तीफा AAP के लिए एक बड़ा झटका है।
राजनीतिक परिदृश्य पर प्रभाव
गहलोत के इस्तीफे ने दिल्ली की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दिया है। यह इस्तीफा अगले कुछ महीने में होने वाले विधानसभा चुनावों की दिशा को प्रभावित कर सकता है। यह सवाल उठता है कि क्या यह इस्तीफा पार्टी के आंतरिक मतभेदों और उसकी नीतियों की विफलताओं का प्रतीक है।
इस मामले के बाद AAP की अंदरूनी एकता और उसकी शासन करने की सोच पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या पार्टी अपने मूल सिद्धांतों और वादों से दूर जा चुकी है, यह सवाल अब ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। दिल्ली की जनता की क्या प्रतिक्रिया होगी, और ये सब चुनावी समीकरण को कैसे प्रभावित करेगा, यह देखना अहम होगा।
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