महाराष्ट्र की ‘लाडकी बहिन’ योजना से 2,289 महिलाओं के नाम एक झटके में हटाए गए—जांच में ये सब सरकारी कर्मचारी निकलीं। महिला व बाल विकास मंत्री अदिति तटकरे ने विधानसभा में लिखित जवाब देकर बताया कि ये सभी लाभार्थी योजना के नियमों के हिसाब से अपात्र थीं, फिर भी उन्हें भुगतान मिल रहा था। अब राज्य सरकार ने इन सबको सूची से बाहर कर दिया है और बाकी आवेदनों की पड़ताल और सख्त कर दी गई है।
क्या मिला जांच में
यह योजना अगस्त 2023 में महायुति सरकार ने शुरू की थी। लक्ष्य साफ था—21 से 65 वर्ष की आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये डीबीटी के जरिए देना, ताकि पोषण, स्वास्थ्य और घरेलू फैसलों में उनकी हिस्सेदारी मजबूत हो। लेकिन निर्देशिका में साफ लिखा है: सरकारी कर्मचारी और सार्वजनिक उपक्रमों (PSU) में नियमित/स्थायी स्टाफ इसके दायरे से बाहर हैं।
समीक्षा में जो तस्वीर उभरी, वह चौंकाने वाली थी। पहले चरण की बारीकी से स्क्रूटनी में करीब दो लाख आवेदनों को खंगाला गया और वहीं से सरकारी सेवा में कार्यरत महिलाओं के नाम सामने आए। मई में सरकार ने संकेत दिया था कि संख्या 2,200 के पार है। अब अंतिम संख्या 2,289 पर आकर ठहरी है—और सभी को लाभार्थी सूची से हटा दिया गया है।
सरकार एक व्यापक डेटामैचिंग ड्राइव चला रही है। इसका सबसे अहम हिस्सा है आयकर रिटर्न (ITR) डेटा से क्रॉस-चेक। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने 3 जून के नोटिफिकेशन में आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 138 के तहत राज्य के महिला व बाल विकास विभाग के सचिव को ITR डेटा तक अधिकृत पहुंच दी। इसका मतलब—राज्य अब परिवार-स्तर पर ये देख सकता है कि किसी आवेदक के घर में आयकरदाता है या नहीं, और वही आधार बनकर पात्रता तय होगी।
योजना किनके लिए है और किनके लिए नहीं—इसे सरल भाषा में यूं समझें:
- पात्रता: 21–65 वर्ष की महिलाएं, महाराष्ट्र में निवास, परिवार की वार्षिक आय 2.5 लाख रुपये से कम, बैंक खाता आधार से लिंक, वैवाहिक स्थिति कोई भी (विवाहित/विधवा/तलाकशुदा/परित्यक्ता/अविवाहित) चल सकती है।
- अपात्रता: सरकारी विभाग/PSU का नियमित स्टाफ, परिवार में कोई आयकरदाता, या उच्च आय की श्रेणी में आने वाले आवेदक।
यह साफ कर लेना जरूरी है कि नियम ‘सरकारी कर्मचारी’ के लिए अपात्रता तय करते हैं—यही वजह है कि 2,289 नाम हटे। अधिकारियों का कहना है कि आगे भी ऐसे मामलों की पहचान जारी रहेगी, क्योंकि डेटाबेस लगातार मैच किया जा रहा है।
अगला कदम, लागत और सवाल
सरकार ने 2.5 करोड़ आवेदनों की सूची बनाकर एक विशेष टीम को छानबीन का काम सौंपा है। प्रक्रिया बहु-स्तरीय है—पहले आधार और बैंक खाते का eKYC, फिर आय/रोजगार की जांच, और अंत में ITR डेटा, सरकारी पेरोल व सार्वजनिक उपक्रमों की मानव संसाधन सूचियों से मिलान। इससे नकली, डुप्लीकेट या अपात्र प्रविष्टियां पकड़ में आ रही हैं।
डीबीटी पेमेंट वहीं टिकता है जहां डेटा साफ-सुथरा हो। इसी वजह से विभाग आधार-सीडिंग और खाता प्रमाणीकरण को प्राथमिकता दे रहा है। जिनके खाते निष्क्रिय हैं या आधार-मैपिंग में दिक्कत है, उनके भुगतान रोके जा सकते हैं जब तक कि वे दस्तावेज अपडेट न कर दें। यह भी ध्यान रहे कि कुछ सही लाभार्थियों के रिकॉर्ड में त्रुटियां हों तो भुगतान अटक सकता है—इसलिए विभाग ने जिलास्तर पर सहायता डेस्क बढ़ाए हैं।
क्या सरकार गलत तरीके से मिले पैसों की वसूली करेगी? इस पर आधिकारिक तौर पर स्पष्ट घोषणा नहीं हुई। सामान्य प्रशासनिक प्रथा में विभाग पहले लाभ रोकता है, फिर केस-टू-केस आधार पर रिकवरी की प्रक्रिया तय करता है—खासकर तब, जब अपात्रता जानबूझकर छिपाई गई हो। अपील/ग्रेविएंस का रास्ता भी आम तौर पर खुला रहता है ताकि जिनका नाम गलत कट गया हो, वे प्रमाण देकर पुनः सत्यापन करा सकें।
वित्तीय असर भी कम नहीं है। सीधे गणित से समझें—अगर 1 करोड़ महिलाएं पात्र हैं, तो 1,500 रुपये मासिक के हिसाब से सालाना बोझ करीब 18,000 करोड़ रुपये बैठता है। अगर संख्या 1.5 करोड़ तक जाती है, तो सालाना खर्च लगभग 27,000 करोड़ के आसपास पहुंच सकता है। ये अनुमानित परिदृश्य हैं, लेकिन यही वजह है कि सरकार डेटा-आधारित फिल्टरिंग पर जोर दे रही है ताकि पैसा सही हाथों तक पहुंचे और खजाने पर अनावश्यक दबाव न बढ़े।
राजनीतिक पिच पर भी यह योजना निर्णायक साबित हुई। सत्तारूढ़ गठबंधन के नेताओं ने नवंबर 2024 के विधानसभा चुनाव नतीजों में इसके योगदान को खुलकर रेखांकित किया। बड़े-बड़े वादों के बीच सीधे बैंक खाते में आने वाले 1,500 रुपये ने महिला मतदाताओं तक ठोस संदेश पहुंचाया। लेकिन लोकप्रियता के साथ-साथ सबसे बड़ा इम्तिहान निष्पक्षता और टिकाऊ वित्तीय प्रबंधन का है—यही दो सवाल अब हर समीक्षा बैठक की मेज पर हैं।
सत्यापन की रफ्तार बढ़ाने के लिए विभाग तकनीकी टूल्स का सहारा ले रहा है—आईटीआर के अलावा राशन डेटाबेस, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की सूचियां, और संदिग्ध पैटर्न पकड़ने वाले एनालिटिक्स। उदाहरण के लिए, एक ही पते से असामान्य संख्या में आवेदनों की प्रविष्टि, या एक ही परिवार में अलग-अलग आय दावे—ऐसे फ्लैग तुरंत मैनुअल जांच के लिए भेजे जा रहे हैं।
आवेदकों के नजरिये से सबसे जरूरी चीज दस्तावेजों की सफाई है। आम तौर पर मांगे जाने वाले कागज ये हो सकते हैं—आधार, बैंक पासबुक/कैंसिल्ड चेक, निवास प्रमाण, वार्षिक आय का प्रमाण (या स्व-घोषणा जहां लागू हो), और वैवाहिक स्थिति से जुड़े प्रमाण। पुराने पते, गलत जन्मतिथि, या परिवार के सदस्यों की आय संबंधी गड़बड़ी—ये छोटी गलतियां भी भुगतान रोक सकती हैं।
नीति-स्तर पर सरकार दो फ्रंट पर काम कर रही है—एक, अपात्र नाम हटाना; दो, पात्र लेकिन छूटे हुए परिवारों को भीतर लाना। कई बार वास्तविक लाभार्थी बैंक-सीडिंग, मोबाइल नंबर अपडेट या KYC में फंस जाते हैं। जिलों में कैंप लगाकर ऑन-द-स्पॉट अपडेट कराने का मॉडल इसलिए असरदार माना जा रहा है। ग्रामीण इलाकों में आंगनवाड़ी नेटवर्क और शहरी वार्ड-स्तरीय सहायता डेस्क इस अंतर को पाटने में मदद कर रहे हैं।
कानूनी ढांचे की बात करें तो आयकर अधिनियम की धारा 138 संवेदनशील है—यह कर गोपनीयता का अपवाद देती है, लेकिन सिर्फ सार्वजनिक हित और अधिकृत अधिकारियों के लिए। इसलिए डेटा सुरक्षा और सीमित उद्देश्य का पालन अनिवार्य होता है। विभागीय फाइलों में यह रिकॉर्ड रखना पड़ता है कि किस केस में कौन-सा डेटा कब और किस वजह से एक्सेस किया गया। यह पारदर्शिता आगे किसी ऑडिट या न्यायिक समीक्षा की स्थिति में विभाग की ढाल बनती है।
बड़ी तस्वीर में यह पूरी कवायद ‘लीकेज’ रोकने की है। संवेदनशील लाभ में सबसे बड़ा रिस्क अपात्र प्रविष्टियां और डुप्लीकेट क्लेम ही होते हैं। एक ओर जहां 2,289 सरकारी कर्मचारियों की पहचान ने सिस्टम की खामियों को उजागर किया, वहीं यह संदेश भी गया कि स्क्रूटनी अब डेटा-ड्रिवन है और नियमों से बाहर किसी को जगह नहीं मिलेगी।
योजना का सामाजिक प्रभाव तभी गाढ़ा होगा जब लाभ निरंतर और भरोसेमंद रहे। राशन, गैस, स्वास्थ्य—घर का हर बड़ा खर्च अब महंगे फ्रेम में है। 1,500 रुपये भले जीवन-यापन की पूरी दवा न हों, लेकिन सही हाथों में यह रकम महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता की पहली सीढ़ी बनती है। सरकार के लिए चुनौती यही है—पात्रता की रेखा साफ रखो, भुगतान समय पर करो, और शिकायती दरवाजे खुले रखो।
फिलहाल, एक बात तय है—लाडकी बहिन योजना की निगरानी और सख्त होगी। 2,289 नाम हटने के बाद निगाहें अगले चरणों पर हैं—कितने और अपात्र निकलते हैं, कितने सही लाभार्थी जुड़ते हैं, और वित्त का संतुलन कैसे साधा जाता है। यहीं से तय होगा कि यह कल्याण, सुशासन और टिकाऊ बजट—तीनों का संगम बन पाती है या नहीं।
ria hari
सितंबर 20 2025ऐसी पहल से महिलाओं को आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम मिल रहा है। राज्य ने डेटामैचिंग से अपात्रों को हटाया, यह प्रक्रिया भरोसेमंद लगती है। आगे भी सतर्कता रखना ज़रूरी है ताकि सही लोग लाभ उठाएँ।