शाहिद कपूर की नई फिल्म 'देवा' की समीक्षा: उम्मीद से कमजोर प्रदर्शन, रोमांचक कहानी की कमी

शाहिद कपूर की नई फिल्म 'देवा' की समीक्षा: उम्मीद से कमजोर प्रदर्शन, रोमांचक कहानी की कमी

फिल्म 'देवा': एक अनसुलझी कहानी

‘देवा’ फिल्म के डायरेक्टर रोशन एंड्रयूज की कोशिश एक बेहतरीन थ्रिलर पेश करने की थी लेकिन कहीं-कहीं यह संदेशित नहीं होता। फिल्म में शाहिद कपूर प्रमुख भूमिका में हैं जो 'देव अंब्रे’, एक ईमानदार लेकिन जल्दबाज़ी में फैसला लेने वाले पुलिस ऑफिसर का किरदार निभाते हैं। दिलचस्प बात यह है कि उनका यह चरित्र एक याददाश्त खो चुकी व्यक्ति का भी है, जो अपने दोस्त और साथी ऑफिसर की हत्या की गुत्थी को सुलझाने में जुटा है। जहाँ एक तरफ ‘मुंबई पुलिस’ ने एक जटिल और यादगार कहानी पेश की, वहीं ‘देवा’ इसकी गहराई तक नहीं पहुँच पाई।

अलंकरण पर जोर, कहानी पर कम ध्यान

फिल्म की कहानी में कई अलंकारिक तत्व जोड़े गए हैं, जैसे की एक जबरन प्रेम प्रसंग पूजा हेगड़े के किरदार के साथ। इसने फिल्म को बस एक चालू स्तरीय फीलिंग दे दी है। कहानी का मूल फोकस खो गया है, जिसके चलते निरीक्षक का रूखा और जिद्दीपन उभर कर नहीं आ पाता।

शाहिद कपूर की ताकद

शाहिद कपूर, बॉलीवुड में अपनी पैर जमाए हुए एक मंझे हुए अभिनेता हैं और उन्होंने कई बार यह साबित किया है कि वे विभिन्न प्रकार के पात्रों को कैसे निभाते हैं। 'देवा' में उनका अभिनय काफी श्रेष्ठ है, लेकिन यह फिल्म की कमजोरियों को उभार नहीं पाता।

प्रौद्योगिकी और सिनेमेटोग्राफी का बेवजह उपयोग

फिल्म की सिनेमेटोग्राफी और बैकग्राउंड स्कोर 'मुंबई के जीवन' को जीवंत बना देता है, यह दर्शकों को शहर की रंगीनियों में खो जाने का अवसर देता है। हालांकि, कई बार कुछ दृश्य विशेष रूप से तकनीकी उपकरणों के अतिशयोक्तिपूर्ण उपयोग के कारण मुश्किल लगते हैं, जैसे ड्रोन शॉट्स और विस्तृत कैमरा एंगल्स। यह दर्शक को फिल्म से अलग कर सकता है।

सीबीएफसी की कैंची

सेंसर बोर्ड ने फिल्म में कुछ अहम बदलाव भी किए हैं, जिनमें से एक है 6 सेकंड की कटौती एक किसिंग सीन में। इसने कहानी में कुछ वैशिष्ट्य जोड़े होते, लेकिन अंत में इसे भी हटा दिया गया।

निष्कर्ष नहीं, बल्कि एक विचार

निष्कर्ष नहीं, बल्कि एक विचार

भले ही यह फिल्म मूल मलयालम फिल्म 'मुंबई पुलिस' का रीमेक है, इसमें मूल तत्वों की कमी नजर आती है, जिससे यह फिल्म इसके प्रशंसकों को निराश कर सकती है। अगर आप इस फिल्म को उसके किसी खास अभिनय या संदेश के लिए देखने जा रहे हैं, तो यह आपके लिए नही हो सकती। लेकिन अगर आप नई कहानियों के प्रेमी हैं, तो 'देवा' एक नया अनुभव दे सकती है।

टिप्पणि (15)

Jubin Kizhakkayil Kumaran

Jubin Kizhakkayil Kumaran

फ़रवरी 1 2025

देवा में देशभक्ति का कोई सही अंदाज नहीं दिखता। कहानी में भारतीय संस्कृति को समझाने की कोशिश अधूरी रह गई। शाहरुखी खान नहीं, बल्कि ऐसी फिल्में हमें चाहिए जो असली इंडिया का दिखावा न करें। कुल मिलाकर यह फिल्म हमें निराश करती है

tej pratap singh

tej pratap singh

फ़रवरी 1 2025

भारी रैडिकल व्याख्या देखी जा रही है

Chandra Deep

Chandra Deep

फ़रवरी 2 2025

फिल्म 'देवा' का नाम सुनते ही कई लोग रोमांच की उम्मीद करते हैं। परन्तु शुरुआत से ही कथानक एक ही रहस्य पर घूमता रहता है। शाहिद की भूमिका में वह ईमानदार लेकिन जल्दबाज़ी में फैसले लेने वाला सिपाही दिखता है। उसकी स्मृति खोने की स्थिति कहानी में थोड़ा नया मोड़ लाती है। फिर भी इस मोड़ को सही रूप में प्रयोग नहीं किया गया। कई दृश्य में कैमरा एंगल से जटिलता बढ़ाने की कोशिश की गई है। वो शॉटर अक्सर ड्रोन शॉट पर निर्भर रहता है। यह तकनीकी दिखावा दर्शक को वास्तविक भावनाओं से दूर ले जाता है। कहानी के मध्य में जब ट्विस्ट आने वाला था, वह अचानक धुंधला हो जाता है। संवाद भी अक्सर सतही और कच्चे होते हैं। संगीत ने मुंबई की सड़कों को जीवंत बनाया, पर वह कहानी को सहेज नहीं पाया। स्क्रीन पर दिखाए गए अलंकारिक तत्व कभी-कभी बेवजह लगते हैं। एक जबरन रोमांस सबप्लॉट को समझना मुश्किल हो जाता है। यदि निर्देशक ने कहानी के मुख्य धागे को मजबूत किया होता तो फिल्म अधिक असरदार होती। अंत में यह फिल्म एक अधूरी कोशिश के रूप में रह जाती है।

Mihir Choudhary

Mihir Choudhary

फ़रवरी 2 2025

अरे वाह 🎉, ऐसा लगा जैसे फिल्म में बोरिंग मोमेंट नहीं था 🤔

Tusar Nath Mohapatra

Tusar Nath Mohapatra

फ़रवरी 3 2025

शाहिद का काम तो ठीक है, पर फिल्म की कमी से मज़ा नहीं आता। इस अलंकारिक झंझट से बचना बेहतर रहेगा।

Ramalingam Sadasivam Pillai

Ramalingam Sadasivam Pillai

फ़रवरी 3 2025

सही कहा भाई, अक्सर बड़े नामों के पीछे कहानी छूट जाती है।

Ujala Sharma

Ujala Sharma

फ़रवरी 4 2025

काफी बोरिंग थी ये फिल्म।

Vishnu Vijay

Vishnu Vijay

फ़रवरी 4 2025

हमें कुछ नया देखना चाहिए, पुरानी फ़ॉर्मूला से थक गए हैं।

Aishwarya Raikar

Aishwarya Raikar

फ़रवरी 5 2025

देवा का प्रमोशन तो ऐसा था जैसे सुपरहिट। लेकिन असल में तो बस कमर तोड़ लिफ़्ट की तरह थी।

Arun Sai

Arun Sai

फ़रवरी 5 2025

वॉल्यूमेट्रिक डिस्पोजिशन इफ़ेक्टिविटी को रिवाइज़ करना आवश्यक था।

Manish kumar

Manish kumar

फ़रवरी 5 2025

चलो, फिल्म में कुछ हाइलाइट्स थे 😅 लेकिन कुल मिलाकर फेक्ड मोमेंट्स ही ज्यादा थे 🤷‍♂️

Divya Modi

Divya Modi

फ़रवरी 6 2025

बिल्कुल, थोड़ा एंगेजिंग होना चाहिए था 😕

ashish das

ashish das

फ़रवरी 6 2025

सम्पूर्ण रूप से विश्लेषण करने पर, फिल्म में कथात्मक गहराई की कमी स्पष्ट दिखाई देती है, जबकि तकनीकी पक्ष पर प्रयास सराहनीय हैं।

vishal jaiswal

vishal jaiswal

फ़रवरी 7 2025

विचार किया जाये तो दर्शक की अपेक्षा और वास्तविक प्रस्तुतिकरण के बीच असंतुलन स्पष्ट रहता है।

Amit Bamzai

Amit Bamzai

फ़रवरी 7 2025

फ़िल्म की सिनेमैटोग्राफी में मुंबई की झलकें बहुत ही आकर्षक ढंग से पेश की गई हैं। परन्तु दृश्यावली के पीछे की कहानी का ताना‑बाना कमजोर है। निर्देशक ने कई बार तकनीकी उपकरणों पर अधिक भरोसा किया है। इस कारण से दर्शक को भावनात्मक जुड़ाव महसूस नहीं होता। शाहिद की किरदार निभाने की शैली में उतार‑चढ़ाव दिखता है। वह कभी सहज और प्रभावी, तो कभी अनावश्यक दिखता है। इसलिए फ़िल्म को एक स्थिर बिंदु नहीं माना जा सकता। अंत में, यह एक मिश्रित अनुभव प्रदान करती है।

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