दशहरा - भारत का प्रमुख विजय उत्सव

जब हम दशहरा, हिंदू धर्म में अंधकार पर प्रकाश की जीत को दर्शाने वाला प्रमुख त्यौहार. Also known as विजयादशमी, it marks the day Lord Rama defeated Ravana after a 14‑year exile को समझते हैं, तो साथ ही दो और महत्वपूर्ण अवधारणाएँ सामने आती हैं। पहला है रावण, असुर राजा जो सीता माता को हराया और राम‑लीला का प्रमुख विरोधी है, जिसका वध दशहरा की मुख्य कथा बनाता है। दूसरा है रामलीला, एक नाट्य रूप जिसमें राम‑सिया‑रावण की कहानी मंचित होती है, जो तहरा के दिन पूरे भारत में धुन धुनी से गूंजती है। तीसरा प्रमुख घटक है भारत, विविध संस्कृति वाला देश जहाँ दशहरा हर राज्य में अलग‑अलग रंग में मनाया जाता है। इन सभी तत्वों की आपसी जुड़ाव हमें यह समझाता है कि दशहरा सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि एक सामाजिक संपर्क का बिंदु कैसे बन गया।

दशहरा की जड़ें प्राचीन पौराणिक ग्रंथों में मिलती हैं, जहाँ अंधकार (रावण) पर प्रकाश (राम) की जीत का प्रतीक है। यह कथा हमें सीख देती है कि ईमानदारी और धैर्य से बड़ी चुनौती भी हर बार जीती जा सकती है। मूल रूप से कुंजिका की शान्ति को दर्शाने के लिए अयोध्या में धाँसू (अग्नि) जलाया जाता था। समय के साथ इस प्रथा का विस्तार राजस्थान की जयपुर, उत्तर प्रदेश के प्रयागराज, तथा महाराष्ट्र के पुणे तक हो गया, जहाँ रथ/जना को दोहराया जाता है।

क्षेत्रीय विविधताएँ और विशेष आयोजन

जब हम भारत के विभिन्न कोनों को देखते हैं, तो दशहरा का रूप थोड़ा‑बहुत बदलता है। दिल्ली में लड्डू के साथ अखाड़े के स्वतंत्रता के झंडे वाले शो होते हैं, जबकि उत्तराखंड में बड़ई का उड़ान और कव्वालियों की शरारतें दिखती हैं। बिहार में ‘बिना रिवाज’ नहीं होता; यहाँ ‘विजय-उत्सव’ में सामुदायिक खाने‑पीने का भी बड़ा योगदान है। पश्चिमी भारत में, खासकर गुजरात में, मोर पंखों से सजी रथ यात्रा और ध्वनि प्रभाव वाले झांकियों का प्रचलन है। दक्षिण में कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में बड़े पैमाने पर रथ” पंगा और 'पुत्री रावण' जलाते हैं, जिससे स्थानीय लोगों को उल्लास मिलता है। यह विविधता दर्शाती है कि उत्सव, सामाजिक जुड़ाव का माध्यम है जो विभिन्न संस्कृतियों को एक साथ लाता है के रूप में दशहरा का प्रमुख कार्य है।

आजकल दशहरा का असर सिर्फ पारंपरिक रिवाजों में ही नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में भी दिखता है। शहरी क्षेत्रों में बड़े‑बड़े मॉल और थीम पार्क अपने मैदान में रथ दौड़ और पिकनिक शैली के कार्यक्रम आयोजित करते हैं। ये इवेंट स्थानीय व्यापारियों को बढ़ी हुई मांग के साथ फायदा देते हैं, जबकि युवा वर्ग को नई तरह का मनोरंजन भी मिल जाता है। गांवों में अब डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रथ दौड़ की लाइव स्ट्रीमिंग होती है, जिससे विदेश में बसे लोग भी अपना हिस्सा महसूस कर सकते हैं। यह दर्शाता है कि दशहरा ने तकनीकी उन्नति के साथ भी अपना मूल संदेश नहीं खोया।

सुरक्षा के मुद्दे भी अब दशहरा की योजना में शामिल हैं। कई शहरों में पुलिस की विशेष टीमें, हेलिकॉप्टर और ड्रोन्स की मदद से भीड़ नियंत्रण करती हैं। जलन के लिए विशेष इमरजेंसी एग्जिट और फायर फाइटर्स की तैनाती अनिवार्य हो गई है। इससे यह स्पष्ट होता है कि दशहरा का आयोजन अब सिर्फ धार्मिक भावना नहीं, बल्कि एक बड़े प्रोजेक्ट मैनेजमेंट की तरह है, जहाँ विभिन्न विभाग मिलकर एक सुरक्षित और सुखद माहौल बनाते हैं।

सभी इन पहलुओं को समझकर हम देख सकते हैं कि दशहरा का महत्व सिर्फ एक तिथि नहीं, बल्कि एक जीवंत कहानी है जो हर साल नए रूप में दोहराई जाती है। नीचे आपको विभिन्न हिस्सों की खबरें, विश्लेषण और फोटो मिलेंगे, जो इस त्योहारी माहौल को और गहराई से दिखाते हैं। इन लेखों को पढ़कर आप न सिर्फ पौराणिक कथा को फिर से महसूस करेंगे, बल्कि आधुनिक भारत में इस त्यौहार के विभिन्न रूपों को भी समझ पाएँगे। अब आगे की सूची में आपका स्वागत है, जहाँ विविध लेख आपको दशहरा की भावना से जोड़ेंगे।

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29 सित॰ 2025 द्वारा Hari Gupta

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