रामलीला – परम्परागत भारतीय नाटक

जब हम रामलीला, एक जीवंत नाट्य रूप है जो भगवान राम के जीवन को मंच पर दिखाता है, Ramlila. इसे अक्सर दशहरा, विजेता राम की रावण पर जीत का उत्सव के साथ जोड़ा जाता है, और इसमें भक्तिगीत, धार्मिक गीत जो कथा को आगे बढ़ाते हैं शामिल होते हैं। स्थानीय कलाकार परम्परागत मंच, पारम्परिक सेट, कपड़े और आवाज़ों से सुसज्जित का उपयोग करके कहानी को जीवंत बनाते हैं। इस प्रकार रामलीला दशहरा का मुख्य आकर्षण है, कलाकारों को मंच प्रदान करती है, और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करती है।

रामलीला के प्रमुख घटक

रामलीला की जड़ें भक्ति आंदोलन में हैं, जहाँ संत कवियों ने पौराणिक घटनाओं को गीत‑संकल्प में बदला। पहली लिखित रिकॉर्ड 16वीं सदी के राजस्थानी रचनाकारों की है, पर मौखिक परम्परा इससे कहीं पुरानी है। प्रत्येक गाँव या शहर में अलग‑अलग शैली विकसित हुई—जैसे उत्तर प्रदेश की ‘भजन बधाई’ शैली और दक्षिण भारत की ‘सर्वनामा’। ये विविधताएँ दर्शाती हैं कि कैसे स्थानीय संस्कृति, भाषा और परिधान नाटक को प्रभावित करते हैं। जब आप किसी गाँव में रामलीला देखते हैं, तो आपको ध्वनि‑विवाद, ताल‑विन्यास और पात्रों के जटिल मेकअप को देखना मिलता है।

आधुनिक समय में रामलीला ने नई रूप‑रेखाएँ अपनायी हैं। बड़े‑बड़े नाट्य मंडल HDTV स्क्रीन, सोशल मीडिया लाइव‑स्ट्रीम और इंटरेक्टिव एप्लिकेशन के ज़रिए दर्शकों तक पहुँच रहे हैं। फिर भी मूल तत्व वही रहता है: राम‑सीता‑लक्ष्मण‑रावण के बीच संघर्ष, नैतिकता की जीत और जनता का साथ। इस परिवर्तन ने युवा वर्ग को आकर्षित किया, जिससे यह परम्परा न थमी बल्कि बढ़ी भी। कई शहरों में पेशेवर कलाकारों के समूह ने ‘ट्रांसफॉर्म्ड रैप बैंड’ और ‘डिजिटली साउंड‑डिज़ाइन’ के साथ प्रयोग किया है, जो दर्शकों को नया अनुभव देता है।

प्रदर्शन की तैयारी में कई महीने लगते हैं। कहानी के हर अध्याय के लिए सेट डिज़ाइनर कच्ची मिट्टी, लकड़ी और कपड़ों से विस्तृत पृष्ठभूमि बनाते हैं; संगीतकार राग‑भजन और ढोल‑ताशा के मेल से ध्वनि बनाते हैं। कलाकारों को युद्ध के चरणों में हल्की बख़्तरबंद पोशाक या पाताल में रहने के लिए काली ऊँची चोगा पहनना पड़ता है। इन सभी तत्वों का संगम दर्शकों को एक पूरा माहौल देता है, जहाँ वे समय‑स्थान की सीमाओं से परे जाकर कथा का अनुभव कर सकते हैं।

नीचे आप विभिन्न लेख, समाचार और विश्लेषण पाएँगे जो रामलीला के इतिहास, विभिन्न क्षेत्रों में उसके रूप‑रेखा, और इस परम्परा को जीवित रखने वाले कलाकारों की कहानियों को कवर करते हैं। चाहे आप पहली बार देख रहे हों या लंबे समय से इस नाटक के प्रशंसक हों, यहाँ से आपको नई अंतर्दृष्टि और उपयोगी जानकारी मिलेंगी। अब आगे की सूची में चलते हैं और देखें कि इस महान परम्परा के कौन‑कौन से पहलू आपको सबसे अधिक रुचिकर लगेंगे।

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