उपमुख्यमंत्री एक राजनीतिक पद है जिसे अक्सर राज्य सरकारों में देखा जाता है। यह सीधे संविधान में नहीं लिखा होता, पर कई सरकारों में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है—खासकर जब गठबंधन हो या पार्टी में वर्गीकरण संतुलित रखना हो। अगर आप जानना चाहते हैं कि उपमुख्यमंत्री का काम असल में क्या होता है, तो यह पेज उसी के बारे में साफ और सीधे तरीके से बताता है।
सबसे पहले, उपमुख्यमंत्री सामान्यत: मुख्यमंत्री का साथ देता है और सरकार के बड़े फैसलों में अहम हाथ होता है। उसे किसी बड़े मंत्रालय की जिम्मेदारी दी जा सकती है—जैसे गृह, वित्त या पब्लिक वर्क्स। कई बार उपमुख्यमंत्री का काम राजनीतिक संतुलन बनाना भी होता है: अलग गठबंधन साथी या बड़े नेता को पद देकर सरकार स्थिर रखी जाती है।
दूसरे, उपमुख्यमंत्री अक्सर कैबिनेट बैठकें चलाते हैं जब मुख्यमंत्री उपलब्ध नहीं होते। बैठक में एजेंडा तय करने, क्रियान्वयन की निगरानी और विभागों के बीच तालमेल बनाना उसकी ज़िम्मेदारी बन सकती है। पर ध्यान दें—यह सब औपचारिक शक्तियों पर निर्भर नहीं बल्कि मुख्यमंत्री के अधिकार और पार्टी की राजनीतिक मजबूरी पर टिका रहता है।
उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा होती है, लेकिन यह नियुक्ति मुख्यमंत्री की सलाह पर ही की जाती है। संवैधानिक रूप से यह पद अलग दर्जा नहीं रखता—यानी संविधान ने इसे विशेष अधिकार नहीं दिए। इसलिए यदि मुख्यमंत्री पद खाली हो जाए तो उपमुख्यमंत्री स्वतः मुख्यमंत्री नहीं बन जाता; पार्टी या विधायिका की सहमति आवश्यक रहती है।
असल जीवन में यह पद राजनीतिक संतुलन और प्रशासनिक सहूलियत के लिए बनाया जाता है। कई बार बड़े राज्यों में दो या उससे अधिक उपमुख्यमंत्री भी होते हैं—यह निर्णय पार्टियों की रणनीति पर निर्भर करता है।
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महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह अपने पद पर बने रहेंगे। बीजेपी की हालिया बैठक में पार्टी विधायकों ने उनपर विश्वास जताया। फडणवीस ने लोकसभा चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए पद छोड़ने की पेशकश की थी, लेकिन अमित शाह ने उन्हें बने रहने को कहा।