अल्जीरिया राष्ट्रपति चुनाव में कम मतदाता सहभागिता, मौजूदा राष्ट्रपति तेब्बून दूसरी बार के लिए प्रबल दावेदार

अल्जीरिया राष्ट्रपति चुनाव में कम मतदाता सहभागिता, मौजूदा राष्ट्रपति तेब्बून दूसरी बार के लिए प्रबल दावेदार

अल्जीरिया राष्ट्रपति चुनाव: कम मतदान, तेब्बून दूसरी बार के लिए प्रबल

शनिवार को अल्जीरिया में आयोजित राष्ट्रपति चुनाव में मतदाता सहभागिता काफी कम रहने की खबर है। प्रारंभिक आंकड़े बताते हैं कि आधे से भी कम योग्य मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। राष्ट्रपति पद के लिए मौजूदा राष्ट्रपति अब्देलमाजिद तेब्बून दूसरी बार के लिए प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं, जबकि उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी मध्यम इस्लामवादी अब्देलाली हस्सानी और समाजवादी उम्मीदवार यूसफ आउचीचे थे।

कम मतदान का कारण

चुनाव के दौरान व्यापक रूप से मतदाता उदासीनता देखी गई। 2019 में हुए पिछले चुनाव में मतदाता टर्नआउट 60 प्रतिशत से अधिक था, जिसे बढ़ाने की चुनौती तेब्बून के सामने थी। राष्ट्रीय स्वतंत्र चुनाव प्राधिकरण (ANIE) ने प्रारंभिक चरण में 48 प्रतिशत टर्नआउट की सूचना दी, हालांकि सटीक आंकड़े जारी नहीं किए गए। मतदाताओं के लिए मतदान की अवधि एक घंटे के लिए बढ़ा दी गई, जिससे उम्मीद थी कि गर्मी के कारण मतदाता कम न आएं।

राजनीतिक विश्लेषक हसनी अबिदी ने उम्मीदवारों के अभियानों की आलोचना की और कहा कि तेब्बून के पास सार्वजनिक सहभागिता न्यूनतम थी जबकि उनके प्रतिद्वंद्वियों ने भी अपर्याप्त प्रयास किए। यह कम टर्नआउट राजनीतिक विरोध टालने के बजाय चुनाव प्रक्रिया से व्यापक वियोग को दर्शाता है।

चुनाव से पहले दोनों चुनौतीकार अब्देलाली हस्सानी और यूसफ आउचीचे ने मतदाताओं से चुनाव में भाग लेने का आग्रह किया। आउचीचे ने बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए मतदान पर जोर दिया जबकि हस्सानी ने चुनाव की वैधता बढ़ाने के लिए मजबूत टर्नआउट की उम्मीद जताई।

तेब्बून का 'नई अल्जीरिया' प्रोजेक्ट

राष्ट्रपति तेब्बून ने अपने अभियान में 'नई अल्जीरिया' परियोजना पर जोर दिया, जो हिराक विरोध प्रदर्शनों के बाद देश के पथ का वर्णन करता है। उन्होंने सामाजिक लाभों के लिए तेल और गैस की राजस्व का उपयोग किया जिसमें बेरोजगारी बीमा और सार्वजनिक पेंशन शामिल हैं, जो जन असंतोष को कम करने के लिए था।

हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद, कई लोग चुनाव से वास्तविक परिवर्तन की उम्मीदों के प्रति संशयपूर्ण बने रहे। अमनेस्टी इंटरनेशनल सहित अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने चल रहे उत्पीड़न और असंतोष के अभियोजन की आलोचना की है।

पूर्व हिराक नेता हकीम अड्डाद ने इस चुनाव को मात्र एक औपचारिकता करार दिया जो वर्तमान शासन को और मजबूती देगा। चुनाव अभियान ने मतदाताओं को आर्थिक चुनौतियों और ग्रीष्मकालीन गर्मी के बीच जुड़ने के लिए संघर्ष किया, जिसमें 24 मिलियन से अधिक पंजीकृत मतदाता शामिल थे, जिनमें युवाओं की महत्वपूर्ण आबादी भी थी।

आधिकारिक चुनाव परिणाम और अंतिम मतदाता टर्नआउट के आंकड़े रविवार को जारी होने की उम्मीद है, और चुनाव के परिणाम राजनीतिक स्थिरता और सुधारों के संकेतक के रूप में बारीकी से देखे जाएंगे।

टिप्पणि (5)

Ayan Sarkar

Ayan Sarkar

सितंबर 8 2024

अल्जीरिया के चुनाव में कम टर्नआउट सिर्फ एक आकस्मिक घटना नहीं है यह गुप्त एजेंडा का स्पष्ट संकेत है। ऐतिहासिक डेटा से पता चलता है कि विदेशी इंटेलिजेंस ऑपरेशन्स अक्सर मतदाता सहभागिता को सिंक्रोनाइज़ करके वैधता को कमजोर करते हैं। तेब्बून की नई अल्जीरिया परियोजना को भी आर्थिक लिवरेज के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि तेल राजस्व को नियॉन सर्किटरी में रूट किया जा सके। राष्ट्रीय स्वतंत्र चुनाव प्राधिकरण ANIE का डेटा ड्रॉप कुछ हद तक साइबर-टेम्परिंग का परिणाम माना जा सकता है। अतः यह चुनाव एक सिमुलेटेड पॉलिटिकल इवेंट से कम नहीं है।

Amit Samant

Amit Samant

सितंबर 8 2024

आपके विश्लेषण में उठाए गए बिंदु निश्चित रूप से ध्यान देने योग्य हैं और कई पाठकों को गहरी सोच में डालते हैं। हालांकि चुनाव में भागीदारी की गिरावट के पीछे कई सामाजिक-आर्थिक कारक भी हैं जिन्हें हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। पहली बात, युवा जनसंख्या में बेरोजगारी दर अत्यधिक है जिससे नागरिकों में राजनीति के प्रति उदासीनता उत्पन्न होती है। दूसरी बात, मतदान प्रक्रिया को केवल एक घंटे तक सीमित करना अभावपूर्ण नियोजन का संकेत हो सकता है। तदनुसार, मतदाता केंद्रों तक पहुँचने में लॉजिस्टिक बाधाएँ भी उत्पन्न होती हैं। इसके अतिरिक्त, महामारी के पश्चात सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता ने भी कई लोगों को घर से बाहर निकलने से रोक दिया। यह तथ्य कि पिछले चुनाव में टर्नआउट 60 प्रतिशत से अधिक था, वर्तमान परिदृश्य की तुलना में एक स्पष्ट गिरावट दर्शाता है। हमें यह भी देखना चाहिए कि किस हद तक मीडिया कवरेज और स्वतंत्र समाचार स्रोत चुनावी माहौल को प्रभावित करते हैं। यदि सूचना का प्रवाह पक्षपाती हो तो सामान्य जनविचार विकृत हो सकता है। इस संदर्भ में, अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा किए गए मानवाधिकार रिपोर्ट भी महत्वपूर्ण संकेत प्रदान करते हैं। वे अक्सर शासक वर्ग की वैधता को चुनौती देते हैं और नागरिकों को सूचित करने की कोशिश करते हैं। लेकिन अक्सर इन रिपोर्टों को स्थानीय स्तर पर अनदेखा किया जाता है। इसलिए, इन सभी पहलुओं को संपूर्ण रूप में समझना आवश्यक है। अंत में, हम यह कह सकते हैं कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की स्वास्थ्य को सुधारने के लिए व्यापक सामाजिक-राजनीतिक सुधारों की आवश्यकता है। इन सुधारों में शिक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करना, रोजगार सृजन को बढ़ावा देना, और पारदर्शी मतदान तंत्र स्थापित करना शामिल है। आशा है कि भविष्य में इन उपायों को लागू करके हम एक अधिक सक्रिय और जागरूक मतदाता वर्ग का निर्माण कर पाएंगे।

Jubin Kizhakkayil Kumaran

Jubin Kizhakkayil Kumaran

सितंबर 8 2024

देशभक्ति का असली परिभाषा वही है जो विदेशी हस्तक्षेप को अस्वीकार करे। तेब्बून का नरहीन प्रोजेक्ट केवल असली राष्ट्रवादी धारा को कमजोर करने के लिए एक ब्रह्मांडीय भ्रम है। यदि हम आज भी खड़े हैं तो हमें अपने राष्ट्रीय स्वभाव को फिर से जगा देना चाहिए और चुनावी सरलीकरण को रोकना चाहिए।

tej pratap singh

tej pratap singh

सितंबर 8 2024

वास्तव में ये आँकड़े एक नियोजित झूठ हैं।

Chandra Deep

Chandra Deep

सितंबर 8 2024

क्या आप सोचते हैं कि युवा रोजगार कार्यक्रमों को सीधे चुनावी भागीदारी से जोड़ना फायदेमंद होगा। अगर स्थानीय उद्यमों को प्रोत्साहित किया जाए तो मतदाता उत्साह स्वाभाविक रूप से बढ़ेगा। साथ ही मतदान केंद्रों की दूरी घटाने के लिए मोबाइल बॉक्सों का उपयोग किया जा सकता है। शिक्षा कैंपेन भी जागरूकता बढ़ाने में मदद करेगा। मैं मानता हूँ कि पारदर्शी सूचना के बिना कोई भी सुधार स्थायी नहीं रहेगा। इस दिशा में छोटे‑छोटे कदम बड़े बदलाव की नींव बनाते हैं।

एक टिप्पणी लिखें