समान नागरिक संहिता (UCC) क्या है और क्यों चर्चा में है?

भारत में अलग‑अलग समुदायों के लिए अलग‑अलग व्यक्तिगत कानून हैं — शादी, तलाक, उत्तराधिकार और संपत्ति पर। समान नागरिक संहिता का मकसद ये नियम सबके लिए एक जैसा करना है ताकि नागरिकों को उनके धर्म के आधार पर अलग‑अलग कानूनों में फर्क न झेलना पड़े।

एक छोटी सी बात याद रखें: भारतीय संविधान का आर्टिकल 44 इसे एक लक्ष्य बताता है, पर वह अनिवार्य नहीं है — यानी सरकार और संसद को कानून बनाना होगा, न्यायालय नहीं।

समान नागरिक संहिता से क्या फायदे हो सकते हैं?

सबसे बड़ा दावा यह है कि बराबरी आएगी। अगर सभी के लिए एक बेसिक कानून होगा तो महिलाओं के हक और विरासत में पारदर्शिता बढ़ेगी। उदाहरण के लिए, सुधारवादी कदमों से तलाक और संपत्ति के मामलों में महिलाओं को बेहतर सुरक्षा मिल सकती है।

दूसरा, कानूनी एकरूपता से प्रशासन सरल होगा; राज्य‑केंद्र और विभिन्न समुदाय के बीच टकराव कम हो सकता है। तीसरा, युवा पीढ़ी के लिए एक साफ़ और एकसमान नियम समझना आसान रहेगा।

विरोध और चुनौतियाँ — ये मुद्दे कैसे सुलझेंगे?

कई समुदाय इसे अपनी धार्मिक आज़ादी पर असर डालने वाला मानते हैं। यही वजह है कि जोरदार विरोध भी सामने आता है। दूसरी समस्या federal structure है — निजी कानून पर राज्यों और केंद्र के अधिकार, और सांस्कृतिक विविधता का सम्मान कैसे होगा? ये बड़ी बातें हैं जिन्हें कानून बनाते वक्त ध्यान में रखना होगा।

कानूनी चुनौतियाँ भी हैं: मौजूदा व्यक्तिगत कानूनों के साथ टकराव, संविधान की व्याख्या, और सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों की छाया। Shah Bano जैसे मामलों ने दिखाया कि सोशल सुधार और राजनीतिक संवेदनशीलता के बीच संतुलन खोजना मुश्किल हो सकता है।

तो इसे लागू कैसे किया जा सकता है? कुछ व्यावहारिक कदम मददगार होंगे:

1) चरणबद्ध तरीका: पहले ऐसे विषय चुनें जहाँ साफ़ बराबरी संभव हो — जैसे उत्तराधिकार या घटित हिंसा में सुरक्षा।

2) हिस्सेदारी और संवाद: समुदायों, महिलाओं के समूहों, धार्मिक संस्थाओं और विधि विशेषज्ञों से खुली बातें जरूरी हैं। जब लोग शामिल होंगे तो विरोध कम होगा।

3) गोवा मॉडल से सीख: गोवा ने लंबे समय से एकसमान नियम अपनाए हैं; वहाँ के अनुभव से नीति‑निर्माता सीख सकते हैं कि लागू करते समय क्या मुश्किलें आईं और उन्हें कैसे संभाला गया।

4) ट्रांज़िशनल प्रावधान और राहत: नए कानून के साथ कुछ वैधानिक छूटें या संक्रमणकालीन नियम रखें ताकि अचानक बदलाव लोगों को असुरक्षित न करे।

5) शिक्षा और जागरूकता: लोगों को नए अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में बताना होगा — कोर्ट ही सब कुछ नहीं कर सकता।

अंत में, समान नागरिक संहिता सिर्फ कानून बदलने की बात नहीं है; यह समाज के छोटे‑छोटे व्यवहारों और निर्णयों को भी बदलना चाहिए। अगर नीति बनाते वक्त पारदर्शिता, समावेश और सुरक्षित संक्रमण को प्राथमिकता दी जाए तो संभव है कि भारत में एक संतुलित और काम करने योग्य UCC बन सके। आप क्या सोचते हैं — समान नियम समाज को मजबूत बनाएंगे या दर्द बढ़ाएँगे? टिप्पणी में बताइए।

5 अगस्त पर क्या जम्मू-कश्मीर को फिर राज्य का दर्जा मिलेगा या सरकार लाएगी समान नागरिक संहिता?

5 अगस्त पर क्या जम्मू-कश्मीर को फिर राज्य का दर्जा मिलेगा या सरकार लाएगी समान नागरिक संहिता?

6 अग॰ 2025 द्वारा Hari Gupta

5 अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाने के छह साल पूरे होने से पहले मोदी और अमित शाह की मीटिंगों ने जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा या UCC लागू होने की अटकलें बढ़ा दी हैं। घाटी के नेता राज्य का दर्जा लौटाने की मांग पर दबाव बना रहे हैं। लेकिन सरकार ने अब तक अपने इरादे साफ नहीं किए हैं।